नमस्ते मैं हूँ डॉ. शरद कसारले
वेद और उसके बेशुमार चमत्कार
वेद में एक अद्भुत शक्ति है
वेद स्मृति, एकाग्रता, स्मरण, सीखने की क्षमता को ठीक कर सकता है और साथ ही यह कई रक्त परिसंचरण में सुधार करता है
जो बीमारी दवाइयों से ठीक नहीं हो सकती वो वेदों के चमत्कारों से ठीक हो जाती है। गायत्री मंत्र
ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
इसमें 7 लोक हैं ओम भूर ,भुवा, स्वाहा, जना, तापा, महार, व सत्यम (सत्यलोक) | यह सारे लोक और उनकी स्तुति वेदों द्वारा की गई है इस गायत्री मंत्र में।
वैसे ही महामृत्युंजय जप से अल्जाइमर, पार्किंसंस जैसी बीमारियां काबू में आ जाती है।
साइंस में अब यह मानना शुरू कर दिया है। की वेद हमारे ब्रेन पावर को तेज करते है | अगर आप वेद पढ़ते है हर रोज पढ़ते है तो उससे आपकी स्मृति हानि नहीं होगी |
महामृत्युंजय जाप जो कुछ इस प्रकार है
नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय त्र्यम्बकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्निकालाय कालाग्निरुद्राय नीलकण्ठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्र्वराय सदाशिवाय श्रीमन् महादेवाय नमः
इसके आगे कुछ इस प्रकार है
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ
ये सुनने में थोड़ा कठिन है
लेकिन सिर्फ सुनने से भी हमारी ब्रेन की जो पावर है, ब्रेन के जो न्यूरॉन है| हमारे मस्तिष्क में 100 जोड़े न्यूरॉन्स होते हैं, वे सक्रिय हो जाते हैं और न्यूरोट्रांसमिशन बढ़ जाता है और स्मृति, स्मरण, एकाग्रता और यहां तक कि अवसाद, चिंता भी बढ़ जाती है।
जब आप वेद सुनते हो और स्वर वेद सुनते हो उसका प्रभाव हमारे ब्रेन और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पे बहुत अछि तरह से होता है | जब आप वेद सुनते हो और स्वर वेद सुनते हो उसका प्रभाव हमारे ब्रेन और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पे बहुत अछि तरह से होता है।
वेदों का अभ्यास जब भी हम बात करते है तो जगत गुरु शंकराचार्य हमें याद आते है
शंकराचार्य जी से जब पूछा गया की आपका परिचय क्या है ? आपका परिचय दीजिये ।
ऐसा उनके गुरु ने उनके पहले मुलाकात पर पूछा था
शंकराचार्य जी ने बहुत ही सरलता से उत्तर दिया
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुखम
न मंत्रो न तीर्थम न वेद न यज्ञाः
अहम् भोजनम नैवा भोज्यं न भोक्ता
चिदानंद रूपः शिवोहम ! शिवोहम !
न में पुण्य हु न में पाप, न सुख हु न दुःख हु
न मंत्र हु न तीरत हु, न वेद हु न यज्ञ हु
में न भोजन हु न खाया जाने वाला हु और न खाने वाला हु
में चैतन्य रूप हु, आनद हु शिवम् हु ! शिवम् हु !
कितनी सरलता से उन्होंने इसका वर्णन किया
न में मृत्यु शंका न में जाती भेदः
पिता नैवा में नैवा माता न जन्मा
न बन्धुर न मित्रं गुरुर नैवा शिष्यः
चिदानंद रूपः शिवोहम ! शिवोहम !
न मुझे में राग है न द्वेष है
न ही लोभ है न ही मोह है
न ही मुज्झ में माध है न इर्षा की भावना है
न मुझमें धर्म, अर्थ, काम मोक्ष है
में चैतन्य रूप हु आनंद हु शिवम् शिवम्
में शनकर जी का शाख शात अवतार हु
जब मुझ में आनंद भरा है मुझे डिप्रेशन कैसे आएगा खुशिया जब हो तो दुःख आप कहाँ से महसूस करेंगे
आपके पास सरलता है तो आपके रास्ते भी सीधे हो जाते है | इसका आपने जीवन से बहुत गहरा सम्बन्ध है
जैसे राग, लोभ, द्वेष ये उन्होंने बताया है और ईर्ष्या की भावना हम निकाल दे और लोगों के प्रति प्रेम की भावना रखे तो हमसे कोई सुखी और हमसे कोई हेल्दी नहीं होगा
और वेदों ने ये बहुत अच्छा किया है की मन ही देवता मन ही ईश्वर मन ही मालिक है
तो मन को हम स्वच्छ रखें, मन को स्वस्थ रखे तो तन अपने आप निखरेगा और स्वस्थ रहेगा
बहुत बहुत धन्यवाद||
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